फर्जी मुकदमे और पत्रकारिता का फर्ज


फर्जी मुकदमे और पत्रकारिता का फर्ज
शासन, व्यवस्था, सत्ता जो कुछ छुपाने की कोशिश करें उसे लोगो के सामने लाना,(उजागर) करना ही पत्रकारिता है बाकी तो सब विज्ञापन है। किसी से छुपा नहीं है कि सूदखोरी के करोड़ों का गैरकानूनी बाजार को कौन संरक्षण देता है और सूदखोरो को कौन बचाता है। क्या ये सच नहीं कि सूदखोरों के चंगुल में फसने वाला तिल-तिल करके मरता है? क्या ये सच नहीं कि सूदखोरों के आतंक के चलते न जाने कितने लोग आत्महत्या कर चुके है? आदमी को अपने जाल में फंसाकर उसके खून की अंतिम बूंद तक निचोड़ लेना सूदखोरों का काम है। क्या ये सत्य नही है।
एक सूदखोर से पीड़ित की खबर जिसका की पुख्ता सबूत है उसे खबर बनाकर चलना ही मेरे लिए सबसे बड़ा अपराध हो गया। चूंकि इस खबर की तहे स्थानीय पुलिस के तत्कालीन थानाध्यक्ष जो वर्तमान में कैन्ट थानाध्यक्ष के रूप में कार्यरत है,से जा मिला यहीं नहीं बात खुलने लगी कि किस तरह से सूदखोरों का एक बड़ा गैंग शहर में संचालित हो रहा है। इस गैंग में कानून व्यवस्था से जुड़े लोग भी है और भी सफेदपोश जिनके जुबान पर लोगो की भलाई की बातें हैं।
खबर चलते ही ये पूरा गैंग सक्रिय हो गया और कोशिश करने लगा की बात दब जाए सच सामने न आए। सोचिए तो हम किस व्यवस्था में रह रहे है जहां गैरकानूनी काम को पूरी तरह से कानून का वरदहस्त प्राप्त है। खबर को न चलाने की न जाने कितनी धमकियां मुझे मिली। हर एक कोशिश के बाद जब खबर नहीं रूकी तो मेरे ऊपर रंगदारी का मुकदमा राजातालाब थाने में दर्ज करवा दिया गया। पुलिस प्रशासन के आला अधिकारी बताते कि इस मुकदमे का आधार क्या है? और ये भी बताये कि सूदखोर के खिलाफ और जिस थानाध्यक्ष का नाम उस सूदखोर के मददगार के रूप में सामने आया उनपर कौन सा मुकदमा दर्ज हुआ है?
थाने और चौकी के स्तर पर नामधारी पत्रकारों की एक फौज बनारस में तैयार की गई है जिनका संपादक थानाध्यक्ष या चौकी इंचार्ज होता है। थाना, चौकी ऐसे पत्रकारों का कार्यालय हुआ करता है और ये अपनी सारी रिपोर्ट थाना और चौकी इंचार्ज को फाइल करते हैं। ये नामधारी पत्रकार अपने वर्दीधारी संपादकों के कहने पर आपके खिलाफ फर्जी मुकदमा भी दर्ज करवाते है ताकि आप पर दवाब बने आप टूट जाए और इनके शरणम् गच्छामि हो जाए। ढेरों नामधारी ऐसे पत्रकारों के पास न तो पत्रकारिता की कोई डिग्री है न तो अक्षरों से भेंट। बहुतेरे अनपढ़ है काम है बस मुर्गा खोजना और अपना खर्च निकालना।
मेरे ऊपर एक और मुकदमा लालपुर थाने में दर्ज करवाया गया दर्ज करवाया गया हो सकता है आने वाले दिनों में कुछ एक और मुकदमे मुझपर लाद दिया जाये। मुझे जेल भेज दिया जाये। ये सब किसलिए? कि मैं टूट जाएं, मैं झुक जाऊं ताकि तथाकथित सम्मानित जिन्हें घोषित किया जा रहा है। उस सूदखोर सुधीर राय समेत उन सभी का बाजार चलता रहे। सिधे- साधे लोग इनके जाल में फसंते रहे और इनकी दुकान आबाद रहे।
मैं नहीं रूकूंगा न हार मानूंगा। मेरी लड़ाई उत्पीड़न के खिलाफ है, मेरी लड़ाई सच के लिए है फर्जी मुकदमे करवा लो आप। पर मैं तो वहीं लिखूंगा वहीं दिखाऊंगा जो सच है।
हां एक बात और आप खुद को पत्रकार कह सकते है पर पत्रकारिता का धर्म निभाना आसान नहीं होता क्योंकि पीड़ित के साथ में खड़े होने के लिए हिम्मत चाहिए।
