•   Tuesday, 19 Aug, 2025
Varanasi: Why is the terror of moneylenders still continuing? Is there any police connivance behind

वाराणसी: आखिर क्यों बरकरार है सूदखोरों का आतंक कही पुलिसिया साठगांठ तो नही

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  Varanasi ki aawaz

वाराणसी: आखिर क्यों बरकरार है सूदखोरों का आतंक कही पुलिसिया साठगांठ तो नही

सरकार की नजर में बिना लाइसेंस महाजनी यानी सूद पर पैसे देना अपराध है, लेकिन, इससे इतर कटु सत्य यह है कि आज पूरे उत्तर प्रदेश में सूदखोरों की एक समानांतर अर्थव्यवस्था कायम है.

एक अनुमान के मुताबिक उत्तर प्रदेश में सूदखोरी का धंधा करोड़ों का है, जिसका कोई लेखा-जोखा सरकार के पास उपलब्ध नहीं है. कोई शहर या गांव इससे अछूता नहीं रह गया है. ऊंचे ब्याज दर पर पैसा देने वाले ये लोग इतने दबंग हैं कि इनके आतंक से कई लोग अपनी जान भी गंवा चुके हैं. यह अवैध धंधा प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र उत्तर प्रदेश वाराणसी में काफी तेजी से फैल रहा है.

इसी साल 7 या 8 अगस्त को वाराणसी जिले के थाना कोतवाली अंतर्गत सोराकुआ इलाके में एक दिल दहलाने वाली घटना सामने आयी. पच्छिम बंगाल के रहने शुभम सामंत सूदखोरों से तंग आकर जहरीला पदार्थ खाकर जीवन लीला समाप्त कर ली. ऐसे तो यह आत्महत्या की घटना थी लेकिन, इसकी जड़ में सूदखोरों का आतंक ही था. यही वजह रही कि..

वाराणसी थाना लालपुर पांडेयपुर थाना क्षेत्र के हुकुलगंज मोहल्ले में 30 वर्षीय सागर विश्वकर्मा के फांसी लगाकर खुदकुशी मामले में नया मोड़ आ गया है। सागर निजी कम्पनी में काम करता था। रविवार को मृतक सागर के पिता गोपाल विश्वकर्मा ने लालपुर-पांडेयपुर थाने में सूद पर पैसा देकर वसूली करनेवाले लोगों को अपने बेटे की मौत के लिए जिम्मेदार ठहराया है। पिता का गंभीर आरोप है कि सूद पर कर्ज देनेवाले मेरे बेटे को कभी फोन करके तो कभी घर आकर धमकियां देते रहे। इससे तंग आकर बेटे ने फांसी लगाकर खुदकुशी कर ली। पिता ने सूदखोरों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की है। गौरतलब है कि शनिवार की शाम हुकुलगंज में दुर्गा मंदिर के पास रहनेवाले सागर विश्वकर्मा ने घर में फांसी लगाकर खुदकुशी कर ली थी। मृतक के पिता गोपाल विश्वकर्मा ने पुलिस को दी गई तहरीर में बताया कि उनके बेटे ने कई लोगों से कर्ज लिया था, जो ब्याज के रूपये और मूलधन के लिए अक्सर परेशान करते थे। हुकुलगंज के काजू रावत और सोयेपुर के चंद सूदखोरी का धंधा करते हैं। यह दोनों कभी फोन करके तो कभी घर आकर सागर को धमकाते रहते थे।

दूसरी घटना यह की वाराणसी थाना लंका निवासी कृष्णा नगर निवासी सन्तोष यादव के ब्यान मुताबिक. उसने साफ तौर पर आरोप लगाया कि उसने एक  सूदखोर सुधीर राय से चार लाख 73 हजार 600 रुपये लिए थे इस एवज में ब्याज सहित छ लाख साठ हजार छ सौ रुपए देकर पैसे की भरपाई कर दी, पुनः सुधीर राय ने सजिश के तहत सन्तोष यादव से जैसे ही उसे जानकारी प्राप्त हुई कि सन्तोष यादव बैंक से मकान को बंधक रखकर 38 लाख रुपये लिया था, सुधीर राय पुराने सम्बन्ध का हवाला देकर पन्द्रह लाख पचीस हजार रुपये जमीन खरीदारी करने के लिए लिया था जो आज तक वापस नही किया, सन्तोष यादव द्वारा पैसे वापस मांगने पर पुलिस चौकी नगवा के संरक्षण में सादे स्टाम्प पर हस्ताक्षर करा कर उल्टे एक्कीस लाख का कर्जदार बना दिया सूदखोरों ने इस तरह इस घटना को अंजाम देकर कर्जदार बना दिया है.

अगली पीड़िता, मेदनी सिंह निवासी कैवल्य धाम दुर्गा कुंड वाराणसी ने टाटा सफारी स्टाम  के लिए सूदखोर सुधीर राय से ब्याज पर तीन लाख रुपए गाड़ी का लोन भरने लिए थे. 
इसके अलावा मेदनी सिंह का कहना है कि सूदखोर को एक लाख अठ्ठासी हजार वापस दिया, पुनः तीन लाख छतीस हजार वापस दिया वह भी ऑफ़लाइन नगद दिया व भी मार्फ़त एजेंट सूदखोर सुधीर राय जो की मेदनी सिंह का कहना है,  

सूरज वर्मा का कहना था कि कर्ज  पे दो लाख रुपये सूदखोर सुधीर राय से लिया था जिस एवज में लगातार प्रताड़ित होने पर सात लाख के आसपास वापस कर दिया, सूरज वर्मा का कहना है कि पैसा वापस करने के बाद जब हमनें आधार कार्ड, पैन कार्ड, व दिया गया चेक वापस तो उसे अपनी जिम में बुलाकर मारपीट किया व पिस्टल के बल आतंकित किया. यह घटना तो एक बानगी है. इसके पहले भी वाराणसी में ऐसी कई घटनाएं हुई हैं.

एक पीड़ित वैभव पाण्डेय की जो कि सूदखोरों की जाल में इतना उलझ चुका था वह आत्महत्या की कगार पर पहुंच चुका था, जब उसने इनसे मुक्ति पाने पुलिस मुख्यालय, योगी बाबा आदित्यनाथ के दरबार मे गुहार लगाई तो सूदखोरों के गैंग में बोखलाहट आ गई उसे दबाब बनाकर जबरिया आपसी सुलहनामा करा लिया लेकिन अभी भी यह तय नही है कि वह इनसे परेशान नही होगा लेकिन जिस दिन इनका आतंक पुनः बड़ा तो वह पुलिस मुख्यालय पहुंच कर अपनी गुहार लगा सकता है।

संगीता खुराना नाम की एक पीड़िता किसी भी प्रकार से सूदखोरों की मुक्ति पाने मीडिया का सहारा लिया था लेकिन उसे भी इन सूदखोरों की गैंग गलत तथ्यों को दिखाकर दबाव बनाया व डरा धमकाकर कर अपने पक्ष में कर लिया।

 

उत्तर प्रदेश साहूकारी अधिनियम 1976 (Uttar Pradesh Moneylenders Act, 1976) और अन्य संबंधित कानून मौजूद हैं. बिना लाइसेंस के सूदखोरी करना एक दंडनीय अपराध है. यदि कोई सूदखोर आपको धमकी देता है या अवैध रूप से धन अर्जित करता है, तो आप पुलिस में शिकायत दर्ज करा सकते हैं और कानूनी कार्यवाही की जा सकती है. लेकिन यहां पुलिस साठगांठ से सभी कार्यवाही अधर पर लटका पड़ा है..कहा यह भी जा सकता है पुलिस विभाग का एक तबका वाराणसी में सूदखोरों के लिए कार्य करता है,

खबरों की तथ्य में जाने के बाद यह मालूम चला कि यह सूदखोरों के गैंग में एक एकलौता शख्स सुधीर राय ही नही इसका पूरा सिंडिकेट काम कर रहा है जिसमें मुख्य रूप पंकज सेठ, जय किशन सिंह (जैकी) अनुज सिंह, प्रह्लाद पाण्डेय, अनुपम गोस्वामी, जितेंद्र सोनकर, राजा हासमी, संजय पटेल, इत्यादि अनेको नाम और भी है जो समय आने पर प्रकाश में आएगा

गुंडों का गैंग बैंक की तर्ज पर करते हैं काम
दरअसल, अंग्रेजी हुकूमत में या उसके थोड़े दिनों बाद तक ऐसा होता था कि अगर कोई व्यक्ति कर्ज नहीं चुका पाता था तो साहूकार गिरवी रखी गई उसकी जमीन हड़प लेता था, उसके गहने ले लेता था. उनकी ब्याज दरें काफी अधिक होती थीं. यह महाजनी प्रथा कही जाती थी. फिर साहूकारी अधिनियम अस्तित्व में आया. वाराणसी न्यायालय के अधिवक्ता कहते हैं, ''मनी लांड्रिंग कंट्रोल एक्ट, 1986 के तहत मनमाना ब्याज वसूली और शर्तों का उल्लंघन करना दंडनीय अपराध की श्रेणी में आता है. इसमें तीन से सात साल की सजा हो सकती है. इस अधिनियम में प्रावधान है कि कोई व्यक्ति बिना लाइसेंस सूद पर किसी को पैसे नहीं दे सकता है. सूद भी बैंक की दर से लिया जाएगा''.

फिर देखते ही देखते राज्य में गुंडा बैंक अस्तित्व में आ गया. यह कुछ ऐसे दबंगों, अपराधियों व तथाकथित राजनेताओं का समूह था जो संगठित तौर पर काफी ऊंचे ब्याज दर पर गरीब जरूरतमंदों को मामूली लिखा-पढ़ी पर कर्ज देता था और उसके दूसरे दिन से वसूली करता था. वाराणसी प्रकरण में भी चार लाख तिहत्तर हजार छ सौ के कर्ज के बदले सूदखोर लगभग सात लाख रुपये ले चुका है यह सन्तोष यादव का कहना है. एक समाजशास्त्री कहते हैं, ‘‘आजादी के बाद जब बैंकों का विस्तार हुआ तो ऐसा समझा गया कि अब साहूकारों-सूदखोरों का शोषण खत्म हो जाएगा. लेकिन, धरातल पर आजादी के 78 साल बाद भी ऐसा नहीं हो पाया है.'' आज हर जिले में ऐसे लोगों का संगठित गिरोह काम कर रहा है.

आपको बता दे हाईकोर्ट ने भी गुंडा बैंक पर नकेल कसने के लिए एडीजी की अध्यक्षता में एसआईटी (विशेष जांच दल) बनाने का निर्देश दिया था. 
एक दंपति व उसके पुत्र की मौत के प्रकरण में दो आरोपियों की जमानत याचिका की सुनवाई के दौरान अदालत की एकल पीठ  ने साफ तौर पर कहा था कि गरीब व जरूरतमंद लोगों को दबंग सूद पर पैसा देते हैं. पैसा समय पर नहीं चुका पाने की स्थिति में उनकी जमीन लिखवा लेते हैं. जमीन की कीमत ज्यादा होने तथा दी गई रकम कम होने की स्थिति में शेष राशि बाद में देने का आश्वासन देते हैं और कुछ दिनों के बाद पूरे परिवार को अक्सर मृत पाया जाता है. इस मामले में अदालत ने दोनों की जमानत अर्जी खारिज कर दी तथा निर्देश दिया कि एसआईटी अपनी जांच रिपोर्ट कोर्ट को सीलबंद लिफाफे में पेश करे.

चंगुल में फंसने की बड़ी वजह
नाम नहीं प्रकाशित करने की शर्त पर सूद पर पैसे देने वाले एक सूदखोर कहते हैं, ‘‘मैं तो किसी को पैसे देने खुद नहीं जाता. जरूरत पड़ने पर वे पैसे लेने आते हैं. सब कुछ लिखकर देते हैं. हमारा पैसा लगा होता है तो रिस्क के बदले कुछ तो हमें मिलेगा और फिर उनका भी काम हो जाता है. तो इसमें बुराई क्या है. जो है सब सामने है और स्पष्ट है.'' वहीं बैठे एक और शख्स का कहना था कि अगर किसी को पैसे की जरूरत होती है चाहे वह व्यापारी हो या किसान या फिर कोई और, उसे वक्त पर पैसा मिल जाता है. जब उनसे यह कहा गया कि व्यक्ति विशेष द्वारा मनमाने सूद पर पैसा देना अवैध है तो उन्होंने कहा, ‘‘कौन सी सरकारी संस्था उन्हें इतनी जल्दी पैसा दे देगी. बेटी की शादी हो, बीमारी की स्थिति हो, श्राद्ध करना हो या फिर खेती, उनका काम तो नहीं बिगड़ता. बदले में उन्हें थोड़ा ज्यादा वापस करना पड़ता है, जो जायज भी है.''

कृषि प्रधान राज्य होने के कारण उत्तर प्रदेश की बड़ी आबादी खेती पर निर्भर है. एक किसान की फसल यदि खराब हो जाती है तो उसका साल भर का अर्थशास्त्र बिगड़ जाता है. इस बीच जरूरतों को पूरा करने के लिए कर्ज ही एकमात्र सहारा रह जाता है. बैंकों से तत्काल और आसानी से ऋण नहीं मिल पाने के कारण सूदखोरों की शरण में जाना इनकी मजबूरी हो जाती है.

हर गांव-शहर में धंधा जोरों पर
अवकाश प्राप्त पुलिस पदाधिकारी कहते हैं, ‘‘सूदखोरों की मोडस ऑपरेंडी बहुत साफ है. ये कर्ज लेने वाले की जरूरत के अनुसार दो से पांच रुपये प्रति सैकड़ा के हिसाब से पैसे देते हैं. हरेक माह की नियत तारीख को कर्जदार को ब्याज की रकम उन्हें देनी पड़ती है. इसके लिए पैसे लेने वाले को एक तरह का लिखित करार भी करना पड़ता है. निश्चित अवधि में उन्हें मूलधन लौटा देना होता है.''

इसमें किसी तरह की गड़बड़ी कभी-कभी उनकी जान की ग्राहक भी बन जाती है. वाराणसी के एक विधायक नाम न छपने के शर्त पर कहते हैं, ‘‘सरकार की कल्याणकारी योजनाएं गांव के दलालों के चंगुल में फंसी हुई हैं. इसलिए गरीब लोगों को इन योजनाओं का लाभ नहीं मिल पाता है. आम आदमी परेशान है, अधिकारी व बिचौलिए इसका नाजायज फायदा उठा रहे हैं.'' हालांकि, ऐसा नहीं है कि केवल किसान ही उनके चंगुल में फंसते हैं. व्यापारी, कम पगार वाले सरकारी या निजी कर्मचारी भी इनकी मदद लेते हैं. व्यापारी तो सामान की मनमानी कीमत लेकर मुनाफे में आ जाता है, लेकिन अन्य लोगों के लिए सूद की रकम देना ही भारी पड़ जाता है. तब फिर शुरू होता है उनकी प्रताड़ना का दौर.

यह सच है कि वाराणसी के हरेक गांव, कस्बा या शहर में यह धंधा बदस्तूर जारी है. सरकार की लाभकारी योजनाएं अगर त्वरित गति से लोगों के लिए सुलभ न हुईं तो आदमखोर बन चुके ये मनी लैंडर्स एक दिन सरकार, सिस्टम, अर्थव्यवस्था व समाज के लिए बड़ी चुनौती बन जाएंगे.

रिपोर्ट- युवराज जायसवाल. वाराणसी
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