आधुनिक भारत में शिक्षा की समस्या और उनका निदान
शिक्षा सीखने की वह प्रक्रिया है , जिसके द्वारा मनुष्य अपने जीवन को ऊचाइयों की ओर ले जाते है । जीवन में चाहे किसी भी प्रकार की परिस्थितियां हो ,शिक्षित मनुष्य के द्वारा उसका हल बहुत आसानी से निकाला जा सकता है। मनुष्य के व्यक्तित्व में सुधार आता है औऱ इससे उसकी बौद्धिक क्षमता कई गुना बढ़ती है । शिक्षा मनुषय के सामाजिक विकास और आर्थिक उन्नति का महत्वपूर्ण आधार है । लेकिन क्या हम शिक्षा को सही अर्थो में अपने जीवन के साथ जोड़ कर मानव के उत्थान के रूप में देख पा रहे है या फिर वर्तमान में शिक्षा सिर्फ पैसे कमाने का एक साधन ही बन कर रह गयी है ।
वर्तमान में सरकारो द्वारा पूर्ण साक्षरता का दंभ तो भरा जाता है । लेकिन हकीकत क्या है यह सर्वविदित है. केवल नाम भर लिख लेना ही साक्षरता की श्रेणी में नही आना चाहिये । व्यक्तित्व के पूर्ण विकास के साथ भी इसको जोड़कर परिभाषित किया जा सकता है। ।
सरकारी स्कूल और निजी स्कूलों में कही भी समानता नही दिखायी देती । इन संस्थाओं में अमीरी और गरीबी के बीच की खाई स्पष्ट देखी जा सकती है । प्राइवेट स्कूलों की फीस इतनी अधिक हो गयी है कि आम आदमी इससे कोसो दूर होता जा रहा है । दूसरी तरफ भ्रष्टाचार के चलते सरकारी स्कूलों का विकास नही हो पा रहा है । अध्यापको की कोठियों और बैंक बैलेंस से इनको देखा जा सकता है । शिक्षा संस्थान आज केवल व्यवसायिक केंद्र बनकर रह गए है । इन सभी बातों पर विचार करना अत्यावश्यक है । तथा इन पर नकेल कसने की भी जरुरत है ।
निहित स्वार्थ और दिखावे के आडम्बर में उलझ कर आज का छात्र पर्यावरण जैसे मुद्दे पर मूकदर्शक बना रहता है । छात्रों का प्रकृति से लगाव खत्म होता जा रहा है।
हमारे इंजिनियरिंग ,मेडिकल, जैसे संस्थानों में शोषण,आत्महत्या और बलात्कार जैसे वारदातो की संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है । छात्रों में त्याग ,तपस्या ,आध्यात्मिक मूल्यों का ह्रास होता जा रहा है। स्पष्ट है कि दर्शनशास्त्र ,साहित्य ,संस्कृत और नैतिकशास्त्र जैसे विषयो के प्रति हीन दृष्टिकोण और व्यवहारिक स्तर में चलन का संभव ना हो पाना । इन विषयों को सरकार द्वारा प्रोत्साहित करके ही इन समस्याओ को किसी हद तक दूर किया जा सकता है।
आज पाश्चात्य शिक्षा का पूर्ण अंधानुकरण हो रहा है ,विदेशी चमक दमक के सामने हमारी अपनी संस्कृति बौनी नजर आती है । जातिवाद के राक्षस ने शिक्षा को भी नही छोड़ा है । शिक्षा में आरक्षण जैसे मुद्दे फिर हावी होने लगे है । वोट के खातिर नेताओं को ऐसे मुद्दे उठाने में समय नही लगता है । फिर उसकी आग में सभी जलते है । इस मुद्दे पर सरकार समय समय पर आर्थिक आधार पर आरक्षण की वकालत करती दिखायी तो देती है, लेकिन आजादी से आज तक इसका हल नही निकल पाया ।
आज देश के कई राज्यो में तो नकल तो जैसे आम बात हो गयी है। जहाँ पेरेंट्स स्वयं बच्चों को नकल करवाने के लिए प्रेरित करते है। अनुशासन के अभाव में सामाजिक ढाचा जैसे चरमरा सा गया है । अभी भी यदि इनको सख्ती से रोका न गया तो समस्या और गंभीर हो सकती है ।
आज बच्चो को मनोवैजानिक द्रष्टि से उनका आकलन और विश्लेषण करके उनके क्षेत्र का निर्धारण किया जा सकता है। जिस भी विषयो में बच्चो की अधिक रूचि हो ,उस पर उसे पूर्ण निर्णय लेने दे साथ ही घर के माहौल को कभी भी बिगड़ने न दे। पारिवारिक कलह को रोकना भी जरूरी है क्योकि पति पत्नी के झगड़े से बच्चो पर इसका बहुत बुरा असर पड़ता है । आज के इस एनीमेशन और स्मार्ट एजुकेशन के दौर में योग और अनुशासन के समन्वय से ही शिक्षा के सही अर्थो को पहचाना जा सकता है। अपनी संस्कृति और शिक्षा को आध्यत्मिक और के साथ जोड़कर ही आधुनिक शिक्षा का विकास संभव हो सकेगा ।
शिक्षा का मुख्य उद्देश्य है – वय्क्ति में सामाजिक, नैतिक तथा अध्यात्मिक मूल्यों को विकास करना। देश का आधुनिकीकरण करने के लिए कुशल व्यक्तियों का होना परम आवश्यक है। अत: हमकोअपने पाठ्यक्रम में विज्ञान तथा तकीनीकी विषयों को मुख्य स्थान देना होगा। इन विषयों से चारित्रिक विकास एवं मानवीय गुणों को क्षति पहुँचने की सम्भावना है। अत: पाठ्यक्रम में वैज्ञानिक विषयों के साथ-साथ मानवीय विषयों को भी सम्मिलित किया जाये जिससे औधोगिक उन्नति के साथ-साथ मानवीय मूल्य भी विकसित होते रहें और प्रत्येक नागरिक सामाजिक, नैतिकता तथा अध्यात्मिक मूल्यों को प्राप्त कर सकें
रिपोर्ट- डा. सुनील जायसवाल. चीफ एडिटर