कर्बला जंग ए हक हुसैनी 72 यजीदी 22000 परास्त
कर्बला जंग ए हक हुसैनी 72 यजीदी 22000 परास्त
आगरा। वाराणसी की आवाज। बिलौचपूरा। यादगार हुसैन की शान में जलसा का आयोजन किया गया जिसमें मुफ्ती आजम मोहिउद्दीन अमजदी ने नमाज इंशा के बाद लोगों को खिताब करते हुए रमजान की फजीलत बयान की। उन्होंने कहा कि इस्लाम में मोहर्रम के महीने का विशेष महत्व क्योंकि इसी महीने में नबास ए रसूल इमाम हुसैन अली मकाम ने अपने परिवार और साथियों के साथ इसी महीने में शहादत का जाम पिया और इस्लाम को जिंदा किया। उन्होंने अपने बयान में कहा इमाम हुसैन अली मकाम की कुर्बानी इस्लाम धर्म इस्लाम के मानने वाले जब तक दुनिया रहेगी हमेशा याद रखेगी। मुफ्ती आजम मोहिउद्दीन अमजदी ने मेहफिल ए हुसैनी में ऐसी समां बांधी की लोग बयान सुनकर रोने लगे सदाए नारे हक नारे तकबीर अल्लाह हो अकबर के सदाए गूंजने लगी। उन्होंने इमाम हुसैन अली मकाम से नबी की मोहब्बत का वाकया पेश करते हुए कहा ।हज़रत इमाम हुसैन और इमाम हसन से नबी की मुहब्बत।
एक दिन सुर्ख रंग के जोड़े पहने हुए हसनैन करीमैन हुजरे फातिमा से निकलते है। कम उम्री की वजह से कभी गिरते हैं, कभी संभालते हैं। और आका करीम ख़ुत्बा इरशाद कर रहे हैं ख़ुत्बा छोड़ कर हुज़ूर ने शहजादों को उठा लिया । वो मंजर भी जमाने ने देखा, हजरत ये अब्दुल्ला बिन शद्दाद कहते हैं कि हुजूर सजदे में थे और सज्दा इतना तविल हो गया। हमें लगा या तो वहीं का नजूल हो रहा है या फिर अल्लाह का हुक्म आ गया। और अल्लाह के महबूब की रुह कब्ज कर ली गई है। लेकिन मैंने जब नज़रें उठा के थोड़ा सा देखा तो क्या मंज़र था कि हुसैन इब्ने अली हुजूर की पुश्त पे बैठे हुए हैं। और मेरे आका सजदे को तूल दे रहे। अल्लाहु अकबर । हुसैन के लिए पैगंबर के सजदो को तूल दिया जा रहा है। हुसैन इब्ने अली कभी मिम्बर पे हूजूर की अतराफ में बैठते हैं। वो मंजर भी दुनिया ने देखा की हूजूर के मुबारक कंधों पर हुसैन इब्ने अली बैठे है और हुजूर की जुल्फों को पकड़ा हुआ है । तो हजरत उमर रजिअल्लाहू अनुहू देख के कहते है वाह वाह कैसी सवारी मयशर आई हुसैन इब्ने अली को । तो मेरे आका मुस्कुराके कहते हैं, उमर सवारी देखते हो? सवार भी तो देखो । अल्लाहु अकबर।
हज़रत उसमा बिन ज़ैद बिन हारसा रजिअल्लाहू तआला अनहू फरमाते हैं। रात का एक पहर गुजर गया और मुझे हूजूर से कोई काम था, मैं आका करीम की खिदमत में हाजिर हुआ , दरें दौलत पे दस्तक दी। हुजूर तशरीफ लाये तो चादर ओढ़ी थी। तो मैंने अपनी हाजत कही तो हूजूर ने मेरी हाजत पूरी कर दी ।लेकिन एक मंजर मैंने देखा कि हुजूर ने जो चादर ओढ़ी थी उसके अतराफ में पहलुओं में उभार थी, जिस तरह अंदर कोई हो, मुझसे ना रहा गया, मैंने पूछ लिया, मैंने कहा बंदा नवाज़ चादर के अंदर क्या है? तो हूजूर ने चादर को खोल दिया। तो कहते हैं मैंने अपनी आँखों से देखा। एक पहलू से इमाम हुसैन लिपटे हुए थे। और एक पहलू से इमाम ए हसन लिपटें हुए थे ।
फ़रमाया ये मेरी बेटी के बेटे हैं ऐ अल्लाह मै इनसे प्यार करता हूं, तू भी इनसे प्यार कर। जो इनसे प्यार करे तु उनसे भी प्यार कर । इनकी मोहब्बत का दर्श दिया। इनके प्यार का सबक पढ़ाया। कहा इनसे प्यार करने वाला मेरे से प्यार करने वाला है। इनसे बुग्ज रखने वाला मेरे से बुग्ज रखने वाला है।
उनकी तकलीफ हूज़ूर को बेचैन कर देती थीं। एक दिन नबी करीम सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम हज़रत ए सईदा फातिमा तो जहरा रजिअल्लाहू तआला अनहा के घर के करीब से गुजरे तो हज़रत इमाम हुसैन के रोने की आवाज आ रही थी तो आपका करीम अलैहिस्सलाम ने फरमाया के फातिमा हुसैन को चुप करवाओ। तू जानती नहीं हुसैन का रोना मुझे दुख देता है। हुसैन इब्ने अली को हूजूर रोने नहीं देते थे, उनको दुखी नहीं होने देते थे क्योंकि रसूलल्लाह सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम जानते थे के ये कितने दुख सहेगा, कितनी तकलीफों से गुजरेगा और कितने मसाएब सहेगा।
आखिरकार।
यज़ीद बिन मुआविया अबू खालिद उमवी वह बदबख़्त शख़्स है जिसकी पेशानी पर अहले बैत कराम अलैहिमु रज़वान के बे-गुनाह क़त्ल का सियाह दाग़ है। यही वह शख़्स है जिस पर हर ज़माने में पूरी दुनिया इस्लाम मलामत करती रही है और क़यामत तक उसका नाम हक़ारत से लिया जाएगा।
मुफ्ती आजम मोहिद्दीन अमजदी ने इमाम हुसैन की शहादत पर बयान करते हुए कहा एक-एक करके, हज़रत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के अहल-ए-बैत से तमाम नौजवान और बहादुर जंगजू शहीद होते गए और क़ुर्बानी का प्याला पी लिया। धिरे-धिरे, जब हज़रत इमाम हुसैन के सभी यार अपनी शहादत हासिल कर गए तो उन्होंने फ़ैसला किया कि अब ख़ुद मैदान में तलवार लेकर निकला जाएं । वो मैदान में गए और यजीदी फौज से लड़ना सुरू कर दिया। इमाम हुसैन अकेले यज़ीदी फ़ौज का मुकाबला काफ़ी देर तक किया।
अकेले होने के बावजूद, किसी ने भी हज़रत इमाम हुसैन को मुकाबला करने का जुर्रत नहीं की, और उसकी सिर्फ़ एक वजह थी कि वह हज़रत अली के प्यारे बेटे थे। उस वक़्त, यज़ीदी फ़ौज के फ़ौजी हुक़्मरान इब्न-ए-साद ने महसूस किया कि वह हज़रत अली के बेटे से किसी भी तरह मुकाबला नहीं कर सकते। इसलिए, उन्होंने अपने तमाम सिपाहियों को इमाम हुसैन की मुखालिफ़त में एक साथ हमला करने का हुक्म दिया। उनके एक साथ हमले के बावजूद, इमाम हुसैन ने साबित किया कि बातिल, चाहे तादाद में कितना भी बढ़ जाए, हक़ और सच के मुकाबले में कभी नहीं टिकता।
मुफ्ती आजम मोहिद्दीन अमजदी ने हजरत अली असगर के वाक्यात पर रोशनी डालते हुए जब वाकया पेश किया महफिल ए हुसैनी में आशिक रसूल रोने लगे नारे तकबीर अल्लाह हू अकबर के सदाए गूंजने लगी।कर्बला में अली असगर की शहादत।
हजरत इमाम हुसैन के बच्चे बिल खुसुश ख़्वातीन प्यास की बिद्दत में हलक खुश्क है। हज़रत शकीना तड़प के अपने बाप से कहती हैं। के मुझे 6 माहीने के अली असगर की प्यास नही देखी जा रही है। हज़रत इमाम हुसैन बच्चे को हाथो मे उठाते हैं और नहर ए फिरात पे पहुंच के फरमाते हैं। तुम्हारा मामला मेरे साथ है इस 6 माहीने के बच्चे ने तुम्हारा कुछ नहीं बिगड़ा है। और चुल्लू भर के उसे पानी पिलाना चाहते हैं । तभी एक तीर आता है जो अली असगर के गले को चीर देता है । ख़ून बहने लगता है। गर्दन लटक जाती है। हज़रत इमाम हुसैन वो बहता हुआ खून अपने हाथों में लेकर आसमान की तरफ उछाल कर कहते हैं। मालिक हुसैन की ये कुर्बानी भी कबुल कर। बहरहाल हज़रत इमाम हुसैन अली असगर को लेकर खेमें की तरफ़ चल देते हैं । लेकिन ज़ुबान पर कोई शिकायत नहीं है। कहते हैं मालिक हुसैन की ये कुर्बानी भी कबुल कर ले । अब ख़ेमों की तरफ आना सहरबानो उम्मे रबाब सय्यदा जैनब , हजरतें शकीना सलामुल्लाह अलैहा का सामना कोई आसान काम नहीं था । लेकिन हुसैन इब्ने अली आते हैं । शहजादे को यहां खेमों के करीब रख के कहते हैं कि ये हौजे कौशर से शैराब हो गया है। अल्लाहू अकबर। कोहराम मच जाता है
यहां तक कि इब्न साद ने अपने लश्कर के साथ इमाम हुसैन रजिअल्लाहू तआला अनहू और आप के रफ़क़ा पर हमला कर दिया। आप के रफ़क़ा, अहबाब, बिरादराना और शहज़ादगान एक-एक करके शहीद होते चले गए। तक़रीबन 50 से ज़ायदा अफ़राद शहीद हो गए और बिल आखिर हज़रत इमाम हुसैन रजिअल्लाहू तआला अनहू को भी बड़ी बेदर्दी के साथ शहीद कर दिया गया। मुफ़्ती आज़म ने तकरीर जारी रखते हुए आका हुसैन की शहादत के बाद बताया कि जबहज़रत इमाम हुसैन की शहादत के बाद।
जब हुसैनियत और यज़ीदियत के बीच खतरनाक जंग चल रही थी, उस दौरान असर की नमाज़ का समय आ गया। इतनी मुश्किल हालत और जख़्मी हालत में भी हज़रत इमाम हुसैन को नमाज़ पढ़ने का इरादा था। जैसे ही उन्होंने नमाज़ शुरू की, यज़ीदी फौज को वह अवसर मिल गया, जिसका वे लोग एक लम्बे समय से इंतजार कर रहे थे। हज़रत इमाम हुसैन सजदे में गए, जब शिमर जिल जोसन ने अपनी तलवार चलाई और हज़रत इमाम हुसैन के सर को शरीर से जुदा कर दिया ।हज़रत इमाम हुसैन की शहादत के बाद, यज़ीदी लोगों ने उनके सर को एक खंजर पर रखकर कूफ़ा शहर में घुमाया। वे गलियों में घूमते रहे । करबला के जंग मे, हज़रत इमाम हुसैन के घरानों में से एक बेटे, जिनका नाम हज़रत जैनुल अबिदीन था, बच गये। उनके अलावा, हज़रत इमाम हुसैन के घर की सभी औरतें कूफ़ा में बंदी बनाकर लाई गईं। हज़रत इमाम हुसैन की इस दिन की शहादत के बावजूद, उनकी विरासत आज तक लोगों के दिलों में जिंदा है और कयामत तक रहेगी। जबकि यज़ीद शाम की अँधेरी में गुम हो गया है, हुसैन हर दिल में रौशनी की तरह जिंदा है।