वाराणसी गुरु पूर्णिमा पर सम्पतकुमाराचार्य ने भक्तों को सुनाई वेदव्यास की कथा


वाराणसी गुरु पूर्णिमा पर सम्पतकुमाराचार्य ने भक्तों को सुनाई वेदव्यास की कथा वैष्णवमठ पर आयोजित कथा-प्रवचन में भक्तों को बताया गु+रु का संदर्भ
वाराणसी (सृष्टि मीडिया)। आषाढ़ के महीने में आने वाली पूर्णिमा बेहद खास है, क्योंकि इस दिन गुरु पूर्णिमा भी मनाई मनाई जाती है। धर्मशास्त्र में गुरु वही है जो मनुष्य का ईश्वर के साथ जोड़ता है। अज्ञानरूपी अंधकार को दूर करने वाला ही गुरु कहलाता है। गुरु शब्द की उत्पत्ति उपनिषदों से हुई है। गु का अर्थ है अज्ञान और रु का मतलब है अज्ञान को मिटाने वाला। गुरु पूर्णिमा पर महर्षि वेद व्यास का जन्मदिन भी मनाया जाता है। गुरु पूर्णिमा पर अपने गुरु का पूजन कर उनके प्रति सम्मान प्रकट किया जाता है। उक्त बातें स्वामी सम्पतकुमाराचार्य ने बुधवार को सामने घाट (मदरवां) स्थित वैष्ण मठ में कही। आयोजन था गुरु पूर्णिमा का।बतादें, इसके पूर्व स्वामीश्री ने अपने गुरु श्रीमज्जगदगुरुरामानुजाचार्य स्वामी भागवताचार्य त्रिदंडी स्वामी की आरती-स्तुति कर उन्हें नमन किया। सैकड़ों भक्तों ने भी दोनों गुरुजनों का पूजन-अर्चन कर आशीर्वाद लिया। मठ पर आयोजित भक्तिमय आयोजन के दौरान सम्पतकुमाराचार्य ने कहा कि हिंदू धर्म में गुरुओं को देवता से भी ऊंचा दर्जा दिया गया है, इसलिए यह दिन भारतीयों के लिए बहुत खास होता है। गुरु पूर्णिमा के दिन लोग महर्षि वेदव्यास की पूजा करके अपने गुरुजनों का भी आशीर्वाद लेते हैं। ऐसा कहा जाता हैं, कि इस दिन गुरुओं की पूजा करने से उनकी विशेष कृपा प्राप्त होती है।महाराजश्री ने उपस्थित भक्तों को एक कथा भी सुनाई। कथा के अनुसार महर्षि वेदव्यास को भगवान विष्णु का अंश माना गया है। वेदव्यास की माता का नाम सत्यवती और पिता का नाम ऋषि पराशर था। महर्षि वेदव्यास को बचपन से ही अध्यात्म में बहुत रुचि थी। एक बार उन्होंने अपने माता-पिता से प्रभु के दर्शन करने की इच्छा प्रकट की और वन में तपस्या करने की अनुमति मांगी। वेदव्यास की इस बात को सुनकर उनकी माता ने उन्हें वन जाने को मना कर दिया। मां की इस बात को सुनकर वेदव्यास वन जाने की हट करने लगें। वेदव्यास के हट करने की वजह से माता सत्यवती को उन्हें वन जाने की आज्ञा देनी पड़ी। जब वेदव्यास वन की ओर जा रहे थे, तब उनकी माता ने उनसे कहा कि जब तुम्हें अपने घर की याद आ जाए, तो वापस आ जाना। माता के इस वचन को सुनकर वेदव्यास वन की तरफ चल दिए। वन में जाकर वेदव्यास कठोर तपस्या करने लगें। भगवान के आशीर्वाद से वेदव्यास को संस्कृत भाषा का ज्ञान हो गया। इसके बाद उन्होंने वेद, महाभारत सहित 18 महापुराणों और ब्रह्म सूत्र की रचना की। लोगों वेदों का ज्ञान देने की वजह से आज भी इन्हें गुरु पूर्णिमा के दिन प्रथम गुरु के रूप में याद किया जाता है।

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