अल्पसंख्यक शरणार्थी आखिर कहां जाएं
अल्पसंख्यक शरणार्थी आखिर कहां जाएं
आगरा 07 अगस्त। आगरा सामाजिक चिंतक-विश्लेषक भारत के विभाजन से बना पाकिस्तान और पूर्व पाकिस्तान, पूर्व पाकिस्तान बंगला भाषी था, पाकिस्तान उर्दू भाषी, पाकिस्तान का लगातार दबाव पूर्वी पाकिस्तान को उर्दू भाषी बनाने का रहा। पाकिस्तान के इस हिस्से का पाकिस्तान से सीधा बॉर्डर नहीं था, इस्लामाबाद से इस हिस्से पर हुकूमत बंगालियों को दोयम दर्जे का नागरिक के रूप में रखा। समय के साथ पाकिस्तान के विरुद्ध आंदोलन और गति ऐसी पकड़ी बंग बंधु शेख़ मुजीबुर रहमान के नेतृत्व में बड़ी लड़ाई के बाद 1971 में भारत में इंदिरा सरकार की मदद से पाकिस्तान से अलग होकर बांग्लादेश बना। शेख़ मुनिवर रहमान बांग्लादेश के जनक पहले राष्ट्रपति फिर प्रधानमंत्री रहे। यहाँ हमें यह नहीं भूलना होगा पाकिस्तान से बांग्लादेश अलग भले हो गया हो लेकिन इस्लाम और पाकिस्तान की जड़े समाप्त नहीं हुई थी, एक तरफ़ मुजीबुर रहमान की अवामी लीग दूसरी तरफ़ मुख्य विपक्षी दल के रूप में पाकिस्तान समर्थक जमाते इस्लामी जमी थी और समय-समय पर विद्रोह के स्वर उठते रहते थे और वो दिन आया जब बांग्लादेश के जनक कहे जाने वाले शेख़ मुजीबुर रहमान के पूरे परिवार के 17 सदस्यों को 15 अगस्त 1975 को मौत के घाट उतार दिया गया, उनकी दो पुत्रियाँ शेख़ हसीना और शेख रेहना जर्मनी में होने के कारण किसी तरह बच गयीं और तख्ता पलट के बाद जर्मनी से भारत आईं और 1981 तक दिल्ली रही।
तख्ता पलट के बाद मुजीबुर रहमान सरकार के ही मंत्री खोंडकर मुश्ताक़ अहमद का राज्य रहा। 1981 में शेख़ हसीना बांग्लादेश लौटीं और अवामी लीग की अध्यक्ष चुनी गयीं। 1975 से 2009 तक ख़ालिदा जिया और शेख़ हसीना सहित लगभग 19 प्रधान मंत्री रहे। 2009 के बाद से शेख़ हसीना लगातार सत्ता में हैं, चुनावों में रिगिंग और तानाशाही के आरोप लगते रहे है। पिछले चुनावों में कहा जाता है कि चुनावी प्रक्रिया का पालन नहीं हुआ, बांग्लादेश के चुनाव में चुनाव पूर्व सरकार त्यागपत्र देकर केयर टेकर प्रधानमंत्री बनाया जाता था और उसके नेतृत्व में चुनाव होता था केयर टेकर प्रधानमंत्री न बनाने को लेकर विपक्ष ने अधिकांशतः चुनाव का बहिष्कार किया।
पाकिस्तान और चीन लगातार मौक़ा देख रहे थे जमाते इस्लामी के पाकिस्तान समर्थक ज़ियारत हुसैन उकसाने का लगातार प्रयास कर रहे थे, मुख्य मुद्दा आरक्षण का बना। बांग्लादेश में 56% आरक्षण है जिसमें से 30% बांग्लादेश के स्वतंत्रता सेनानियों के लिए है, ज़ाहिर है यह सब अवामी लीग के कार्यकर्ताओं के लिए है बस इसी पर युवाओं को लगातार उकसाया जाता रहा। इस आरक्षण को वापस भी ले लिया गया था लेकिन बांग्लादेश की सुप्रीम कोर्ट ने इस 30% आरक्षण को बहाल कर दिया, इससे आंदोलन फिर भड़क उठा और हर विश्वविद्यालय, हर बड़े शहर में खड़ा हुआ, इस उग्र प्रदर्शन के प्रभाव में सुप्रीम कोर्ट ने स्थगित कर सरकार पर डाल दिया कि सरकार तय करे।
छात्रों ने प्रदर्शन को शांतिपूर्ण बताया और रखा भी, लेकिन पाकिस्तान समर्थक शक्तियां और आईएसई सक्रिय थीं। शेख़ हसीना के एक बयान आरक्षण स्वतंत्रता सेनानियों को नहीं तो क्या रज़ाकरों को दें ने हवा दी, पाकिस्तानी समर्थकों ने प्रदर्शनकारियों में घुसकर प्रदर्शन को हिंसक बनाया और एक दिन पूर्व इन हिंसक प्रदर्शनों में 100 लोग मारे गए और परिणति तख्तापलट के रूप में हुई। वहीं शेख़ हसीना के घर में घुस कर अराजकता व तोड़-फोड़ हुई, ये तो शेख़ हसीना ने भाँप लिया और समय से घर छोड़ दिया अन्यथा हाल उनके पिता शेख़ मुजीबुर रहमान और बाक़ी परिवार वाला हो सकता था।
भारत इस समय सकते में है कि पड़ोसी देश में इस तरह की घटना ख़ासतौर पर श्रीलंका, म्यांमार, नेपाल सभी अस्थिर हैं चीन -पाकिस्तान मिलकर अपना कहीं न कहीं रोल अस्थिरता फैलाने में कर रहे है। आर्थिक रूप से भी भारत पर दबाव बढ़ेगा, बांग्लादेश भारत के लिए बड़ी मार्केट है प्रभावित होगी, बॉर्डर पर दबाव बढ़ेगा, बड़ी संख्या में अल्पसंख्यक शरणार्थी भारत आ सकते हैं, साथ ही बड़ी घुसपैठ संभावित है। सरकार को पूरी तरह चौकन्ना रहना होगा