•   Wednesday, 27 Nov, 2024
The story of Karbala The struggle and memories of Imam Hussain

करबला की दास्तां इमाम हुसैन के संघर्ष और यादें

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  Varanasi ki aawaz

करबला की दास्तां इमाम हुसैन के संघर्ष और यादें

माहे मोहर्रम की दूसरी तारीख को इमाम हुसैन अपने अन्सारों और अक़रुबा के साथ मदीना से रवाना होकर करबला पहुंचे थे, जहां उन्होंने अपने खैमे नसब किए। करबला की इस ज़मीन को नैनवां भी कहा जाता था, जो अब इराक़ के करबला के नाम से प्रसिद्ध है। यहां हर साल लाखों लोग रौज़ा ए अक़दस की ज़ियारत करने आते हैं।

चक ज़ीरो रोड स्थित इमामबाड़ा डिप्यूटी ज़ाहिद हुसैन में आयोजित मजलिस में मौलाना रज़ी हैदर रिज़वी ने यज़ीदी लश्कर द्वारा खानदाने रिसालत पर किए गए ज़ुल्मो सितम और पानी की पाबंदी की कहानी सुनाई। वहीं, बख्शी बाज़ार स्थित इमामबाड़ा नज़ीर हुसैन में मौलाना आमिरुर रिज़वी और घंटाघर स्थित इमामबाड़ा सय्यद मियां में ज़ाकिरे अहलेबैत रज़ा अब्बास ज़ैदी ने मजलिस को खिताब किया। शाहगंज के बरनतला में अज़ाखाना फातेह जोहरा में अब्बास ज़की पासबां ने मर्सिया पढ़ा, जिससे हर आंख नम हो गई।

दरियाबाद पठनवल्ली स्थित इमामबाड़ा अबुल हसन खां, जो ढाई सौ साल पुराना है, में दस दिवसीय अशरे की मजलिस सातवीं पीढ़ी की देखरेख में आयोजित की जा रही है। इस इमामबाड़े में चांदी के पंजे लगे हैं और इसकी तामीर अकबर अली खां ने की थी। वर्तमान में मशहद अली खां इस इमामबाड़े की देखरेख करते हैं और मोहर्रम के दिनों में पुरुषों और महिलाओं की मजलिस का आयोजन करते हैं। यहां पांचवीं मोहर्रम को ज़ुलजनाह की शबीह निकाली जाती है और अन्जुमन हाशिमया दरियाबाद ज़ंजीरों से मातम करती है।

कोतवाली चौक पर शोहदा ए करबला की प्यास को याद करते हुए ठण्डे पानी और शर्बत की सबील लगाई गई है। शाहरुख क़ाज़ी और मोमनीन की तरफ से इस सबील का संचालन हो रहा है, जहां राहगीरों और तमाम लोगों को पानी पिलाया जा रहा है, जिससे वे प्यासे हुसैन की प्यास का एहसास कर अश्कबार हो जाते हैं।

रिपोर्ट- मो रिजवान अंसारी. जिला संवाददाता इलाहाबाद
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