चन्द्रशेखर आज़ाद के जन्मदिवस पर दिशा छात्र संगठन और नौजवान भारत सभा का मार्च
चन्द्रशेखर आज़ाद के जन्मदिवस पर दिशा छात्र संगठन और नौजवान भारत सभा का मार्च
प्रयागराज। वाराणसी की आवाज। अमर शहीद चन्द्रशेखर आज़ाद के जन्मदिवस पर आज दिशा छात्र संगठन और नौजवान भारत सभा की ओर से इलाहाबाद विश्वविद्यालय के छात्रसंघ भवन से पैदल मार्च निकाला गया। मार्च विश्वविद्यालय चौराहा होते हुए चन्द्रशेखर आज़ाद चौराहा (नेतराम चौराहा) पर पहुँचा। यहां कार्यकर्ताओं ने जोरदार नारेबाजी की और आज़ाद चौराहे का बोर्ड लगाया, जगह-जगह वॉल राइटिंग, पोस्टरिंग, और स्टिकर चिपकाकर मांग उठाई की नेतराम चौराहे का नाम बदलकर चन्द्रशेखर आज़ाद चौराहा किया जाए। यहां सभा के बाद मार्च आज़ाद पार्क स्थित आजाद प्रतिमा तक निकाला गया, जहां सभा और क्रान्तिकारी गीतों के साथ सभा का समापन किया गया।
दिशा छात्र संगठन के अविनाश ने कहा कि चन्द्रशेखर आज़ाद और उनका संगठन एचएसआरए एक ऐसा समाज बनाना चाहते थे जहाँ हर तरह का शोषण ख़त्म कर दिया जाए। सत्ता पर मेहनतकश काबिज़ हों। जातिगत भेदभाव-उत्पीड़न, स्त्रियों का उत्पीड़न व धार्मिक झगड़ों का नामोनिशान न हो। धर्म का राजनीति से पूर्ण पृथक्करण हो। लेकिन आज धर्म की राजनीति की आड़ में बेरोज़गारी और पर्चा लीक के जरूरी मसले को नेपथ्य में धकेलने की कोशिश की जा रही है। इनके विचारों पर पर्दा इसलिए डाला जाता है क्योंकि आज़ादी के बाद जो व्यवस्था बनी वह इन शहीदों के सपनों के विपरीत है।
आकाश ने कहा कि देश की जनता शिक्षा, चिकित्सा, रोज़गार, आवास आदि बेहद बुनियादी अधिकारों से वंचित है। बहुत बड़ी आबादी का काम-धंधा छिन चुका है। लोगों के लिए दो-जून की रोटी का इन्तज़ाम करना कठिन हो रहा है। छात्र-युवा रोज़गार के अभाव और परीक्षाओं में धांधली और पर्चा लीक से तंग आकर आत्महत्या जैसे क़दम उठा रहे हैं। दिशा छात्र संगठन का मानना है कि आज चन्द्रशेखर आज़ाद जैसे क्रान्तिकारियों को याद करने का मतलब इस तस्वीर को बदलने के लिए उठ खड़े होना है। उनके विचारों पर चलते हुए उनके सपनों के समाज को बनाने के लिए संघर्ष करना ही उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि हो सकती है।
प्रसेन ने बताया कि मौजूदा पूँजीवादी व्यवस्था आर्थिक संकट के लाइलाज भँवरजाल में फँस चुकी है। 1990-91 में आर्थिक उदारीकरण-निजीकरण की नीतियाँ इसी भँवरजाल से निकल पाने की कवायद थी। लेकिन जैसा कि हमेशा होता है, पूँजीवादी व्यवस्था अपने तात्कालिक संकट को भविष्य के और बड़े संकट के रूप में टालती है। वास्तव में आज़ादी के बाद जनता के ख़ून-पसीने की कमाई से जो पब्लिक सेक्टर खड़े किये गये थे, उन्हें 1990-91 में आर्थिक उदारीकरण-निजीकरण की नीतियों के लागू होने के बाद एक-एक करके औने-पौने दामों में पूँजीपतियों के हाथों में बेचा जा रहा है। तरह-तरह की तिकड़मों के जरिये एक तरफ सरकारी विभागों के पदों को खत्म किया जा रहा है। परमानेण्ट भर्तियों की तुलना में ठेके और संविदा पर की जाने वाली नौकरियों का प्रतिशत बढ़ाया जा रहा है। कर्मचारियों को मिलने वाले पेंशन-भत्तों जैसे अधिकारों में कटौती की जा रही है। इन कटौतियों के खिलाफ रेलवे, बैंक, बिजली, रोडवेज आदि के कर्मचारी लगातार संघर्षरत हैं। लेकिन आज की जरूरत है कि कर्मचारी अपने संघर्ष को संकीर्णता से बाहर लायें और छात्र-मज़दूर-कर्मचारी एकता कायम करें तभी सरकार को जनविरोधी नीतियों को वापस लेने के लिए मजबूर किया जा सकता है।
दूसरी पाली में यात्रा करैली के इलाकों में निकाली गयी। कार्यक्रम में मुख्य रूप से शिवा, निधि, चंद्रप्रकाश, प्रियांशु, प्रशांत, प्रेमचन्द, मनीष, अपूर्व, सुहैल, अश्विनी आदि शामिल थे।
रिपोर्ट- मो. रिजवान.. प्रयागराज