प्रयागराज करैली का बुड्ढा ताजिया 25 वर्षों की परंपरा और श्रद्धा का प्रतीक
प्रयागराज करैली का बुड्ढा ताजिया 25 वर्षों की परंपरा और श्रद्धा का प्रतीक
प्रयागराज के करैली स्थित करामात चौकी में इमामबाड़े से मोहर्रम की 7 तारीख, रविवार 14 जुलाई की रात 11:00 बजे, बड़े शानो शौकत और श्रद्धा के साथ करैली का बुड्ढा ताजिया उठाया गया। 'या अली या हुसैन' की गूंजती सदाओं के बीच, यह ताजिया करामत शाह बाबा की गली से निकलकर अपने कदीमी रास्ते से गुजरते हुए अबूबकर मस्जिद, 16 मार्केट, लेबर चौराहा होते हुए 60 फीट रोड की ओर बढ़ा और अंततः वापस अपने इमामबाड़े पर लाकर रख दिया गया। इस ताजिया को उठाने की परंपरा का संचालन साबिर पान वाले की सरपरस्ती में किया गया। स्थानीय लोगों के अनुसार, यह बुड्ढा ताजिया पिछले 25 वर्षों से लगातार उठाया जा रहा है, और यह परंपरा हर साल बड़ी ही श्रद्धा और उल्लास के साथ निभाई जाती है।बुड्ढा ताजिया की विशेषता इसका ऐतिहासिक महत्व और स्थानीय लोगों के लिए इसकी भावनात्मक जुड़ाव है। मोहर्रम के अवसर पर इसे उठाने के लिए स्थानीय समुदाय की व्यापक भागीदारी होती है। लोग अपने घरों से निकलकर सड़कों पर ताजिया के साथ चलते हैं और 'या अली या हुसैन' की सदाओं में शामिल होकर अपनी श्रद्धा प्रकट करते हैं। यह दृश्य करैली में सामाजिक और धार्मिक एकता का प्रतीक बन जाता है। ताजिया के यात्रा मार्ग में हर वर्ष सजावट और रौशनी का विशेष ध्यान रखा जाता है। ताजिया को गुलाब और चमेली के फूलों से सजाया जाता है। जुलूस के दौरान ताजिए पर फ़ोकस लाईट दिखाई जाती है जिसकी वजह से ताजिया पर पड़ने वाली रोशनी का एक अद्भुत नजारा देखने को मिलता है। ताजिया के मार्ग में स्थित हर स्थान पर स्थानीय लोगों द्वारा पानी, शर्बत और तबरूक (प्रसाद) का आयोजन किया जाता है। यह समाजिक सेवा का एक उदाहरण है, जहां सभी मिलकर इस धार्मिक यात्रा को सफल बनाते हैं। करैली के निवासी इस परंपरा को केवल धार्मिक दृष्टिकोण से नहीं, बल्कि समाजिक एकता और भाईचारे के प्रतीक के रूप में भी देखते हैं।
रिपोर्ट- मो रिजवान अंसारी. जिला संवाददाता इलाहाबाद